अपने सारे ज़ख्म दिखाकर लौटुंगा,
अपनी ग़ज़लें उसे सुनकर लौटुंगा.
उसका लौट के आना मुमकिन नहीं मगर,
फिर भी मैं आवाज़ लगाकर लौटुंगा.
मौसम के गुस्से ने जिसको सुखा दिया,
उस दरिया की प्यास बुझाकर लौटुंगा.
शायद मैं ही कर पाऊं ताबीर उन्हें,
उसकी नींद से ख़्वाब चुराकर लौटुंगा.
यादों की दरगाह से उसकी ख़ातिर मैं,
दुआ में अपने हाथ उठाकर लौटुंगा.
जिनको बुझना पड़ा हवा की साज़िश में,
उन दीयों को फिर से जलाकर लौटुंगा.
इश्क़ में जान गँवाने की भी क़ीमत है,
यही बात उसको समझाकर लौटुंगा.
अपनी ग़ज़लें उसे सुनकर लौटुंगा.
उसका लौट के आना मुमकिन नहीं मगर,
फिर भी मैं आवाज़ लगाकर लौटुंगा.
मौसम के गुस्से ने जिसको सुखा दिया,
उस दरिया की प्यास बुझाकर लौटुंगा.
शायद मैं ही कर पाऊं ताबीर उन्हें,
उसकी नींद से ख़्वाब चुराकर लौटुंगा.
यादों की दरगाह से उसकी ख़ातिर मैं,
दुआ में अपने हाथ उठाकर लौटुंगा.
जिनको बुझना पड़ा हवा की साज़िश में,
उन दीयों को फिर से जलाकर लौटुंगा.
इश्क़ में जान गँवाने की भी क़ीमत है,
यही बात उसको समझाकर लौटुंगा.