ऐसे भी मैं ख़ुद की हिफ़ाज़त करता हूँ,
ख़ुद से ही मैं ख़ुद की शिक़ायत करता हूँ.
उम्र दराज़ मुझे कहता है वक़्त मगर,
माँ के आगे अब भी शरारत करता हूँ.
जब ज़मीर पर पाँव कोई रख देता है,
सामने हो सुल्तान बग़ावत करता हूँ.
ज़मीं, आसमां, आग, हवा या पानी हो,
तेरे लिए मैं सबकी इबादत करता हूँ.
प्यार, मुहब्बत, रिश्ते, नाते, मज़हब में,
नहीं कभी मैं कोई सियासत करता हूँ.
जिसमें फ़क़त दुआयें साँसे लेती हों,
सिर्फ़ इकट्ठी ऐसी दौलत करता हूँ.
रस्में मुझसे अदा नहीं जब हो पातीं,
फिर से ज़िन्दा कोई रवायत करता हूँ. (रवायत = परम्परा)
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https://www.facebook.com/pages/Surendra-Chaturvedi/1432812456952945?ref=hl
ख़ुद से ही मैं ख़ुद की शिक़ायत करता हूँ.
उम्र दराज़ मुझे कहता है वक़्त मगर,
माँ के आगे अब भी शरारत करता हूँ.
जब ज़मीर पर पाँव कोई रख देता है,
सामने हो सुल्तान बग़ावत करता हूँ.
ज़मीं, आसमां, आग, हवा या पानी हो,
तेरे लिए मैं सबकी इबादत करता हूँ.
प्यार, मुहब्बत, रिश्ते, नाते, मज़हब में,
नहीं कभी मैं कोई सियासत करता हूँ.
जिसमें फ़क़त दुआयें साँसे लेती हों,
सिर्फ़ इकट्ठी ऐसी दौलत करता हूँ.
रस्में मुझसे अदा नहीं जब हो पातीं,
फिर से ज़िन्दा कोई रवायत करता हूँ. (रवायत = परम्परा)
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