Friday 25 April 2014

मंज़िल नहीं है कोई मेरा रास्ता नहीं,
किस ओर जा रहा हूँ मैं मुझको पता नहीं.

है बेख़ुदी में कौन मेरी मुझको नहीं पता,
कोई तो मगर ये कहे मुझमें ख़ुदा नहीं.

हर दिल में मुझको दहरो-हरम मिलते रहे हैं, (दहरो-हरम = मंदिर-मस्ज़िद)
दुनिया के पत्थरों में मेरा देवता नहीं.

दिन रात झूमता हूँ मैं तेरी शराब में,
मेरे नशे के सामने कोई भी नशा नहीं.

मेरे सिवा भी पास तिरे हैं कई मुरीद,
लेकिन मेरा तो कोई भी तेरे सिवा नहीं.

कल भी रहा था आज भी मुझमें है तू ही तू,
इस घर में रहा आज तक कोई दूसरा नहीं.

कहने से पहले मेरा कहा तूने सुन लिया,
ख़ामोशियों को मेरी किसी ने सुना नहीं.

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