Friday 11 April 2014

मुझमें से आवाज़ लगाता है कोई,
मुझको अपने पास बुलाता है कोई.

मुझको ढूँढने आएगी इक नई सुबह,
कहकर सारी रात जगाता है कोई.

सूने ख़ाली घर में ये क्यूँ लगता है,
जैसे इसमें आता-जाता है कोई.

मैं हूँ तेरे हर्फ़-हर्फ़ में ये कहकर,
मुझको मेरी ग़ज़ल सुनाता है कोई.

सदियों पहले जिनसे रिश्ता टूट गया,
उन यादों को साथ में लाता है कोई.

लगता है जैसे पानी की लहरों पर,
लिखकर मेरा नाम मिटाता है कोई.

मेरी तन्हाई का शायद दुश्मन है,
जब हँसता हूँ मुझे रुलाता है कोई.


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