Thursday 17 April 2014

दर्द मेरा दिल को बहलाने आया है,
ग़ालिब की कोई ग़ज़ल सुनाने आया है.

उसने दरिया बहता हुआ नहीं देखा,
यही वजह वो मुझे रुलाने आया है.

उम्र गँवा कर ख़ुद जो समझ नहीं पाया,
वही बात मुझको समझाने आया है.

अपने घर की ख़ामोशी से घबरा कर,
मेरे घर में शोर मचाने आया है.

उसके पास ना जाने कितने चेहरे हैं,
इक चेहरा जो मुझे दिखाने आया है.

अपने पीछे भरे हुए बादल लेकर,
अबके मौसम आग लगाने आया है.

अपने से नाराज़ बहुत हैं वो लेकिन,
दुनिया का तो साथ निभाने आया है.

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