तकदीरों के दिन जब ढलने लगते हैं,
सूरज के सुरताल बदलने लगते हैं.
बुरे दिनों में मिट्टी चुप हो जाती है,
आसमान अंगार उगलने लगते हैं.
बिछुड़ के तुमसे चलना जैसे काई पर,
उम्मीदों के पाँव फिसलने लगते हैं.
जब भी बूँदें ज़िक्र तुम्हारा करती हैं,
हम गीली मिट्टी पर चलने लगते हैं.
ढल जाते हैं काँटों में अहसास मेरे,
फूलों को जब लोग मसलने लगते हैं.
अम्बर की बाहों में होती है हलचल,
पंछी के जब पंख निकलने लगते हैं.
दर्द करवटें लेता है जब पहलू में,
ग़ज़लों के कुछ शेर निकलने लगते हैं.
मेरी और ग़ज़लों के लिए देखें मेरा ब्लॉग
ghazalsurendra.blogspot.in
सूरज के सुरताल बदलने लगते हैं.
बुरे दिनों में मिट्टी चुप हो जाती है,
आसमान अंगार उगलने लगते हैं.
बिछुड़ के तुमसे चलना जैसे काई पर,
उम्मीदों के पाँव फिसलने लगते हैं.
जब भी बूँदें ज़िक्र तुम्हारा करती हैं,
हम गीली मिट्टी पर चलने लगते हैं.
ढल जाते हैं काँटों में अहसास मेरे,
फूलों को जब लोग मसलने लगते हैं.
अम्बर की बाहों में होती है हलचल,
पंछी के जब पंख निकलने लगते हैं.
दर्द करवटें लेता है जब पहलू में,
ग़ज़लों के कुछ शेर निकलने लगते हैं.
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Khoob Kaha hai Aa. Surendra Ji ...Sadho
ReplyDeleteदर्द करवटें लेता है जब पहलू में,
ग़ज़लों के कुछ शेर निकलने लगते हैं.....
बिछुड़ के तुमसे चलना जैसे काई पर,
उम्मीदों के पाँव फिसलने लगते हैं......