Wednesday 16 April 2014

लगी आग पर काबू पाना आता है,
प्यासा रहकर प्यास बुझाना आता है.

अपनी लौ से बुझे हुए दीयों को जला,
तेज़ हवा को सबक सिखाना आता है.

तूफ़ानों के बाद प्यार के तिनके चुन,
उम्मीदों का नीड़ बनाना आता है.

ऐसी भी तसवीरें हैं मेरे घर में,
जिनसे मिलने गुज़रा ज़माना आता है.

रेत पे मछली या काँटों पर तितली को,
याद बहुत मेरा अफ़साना आता है.

तन्हाई की सरहद पर अहसासों से,
यादों का इक मुल्क बसाना आता है.

जुड़ जाता है ग़ज़ल में मेरी शेर नया,
पंछी की जब  चौंच में दाना आता है.

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