Thursday 24 April 2014

उस जैसा कोई मेरा तलबगार नहीं है,
दुनिया में मेरे यार सा कोई यार नहीं है.

ठुकरा दिया है उसके लिए क़ायनात को,
उसके सिवा किसी से मुझे प्यार नहीं है.

जीते हैं यहाँ लोग सब जन्नत की तलब में,
मरने के लिए कोई भी तय्यार नहीं है.

लोगों ने वफ़ादार को ऐसा सिला दिया,
कहता ही रह  गया कि वो ग़द्दार नहीं है.

हर दौर में सजती रहीं जिस्मों की मंडियां,
अच्छा हुआ कि रूह का बाज़ार नहीं है.

मिट्टी ने कहा एक दिन क़दमों से लिपट के,
उसके सिवा मेरा कोई हक़दार नहीं है.

ये सोच के बस मैंने मेरी उम्र गँवा दी,
क्या मेरे लिए दूसरा संसार नहीं है.

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