हवा के तेवर जब भी बदलने लगते हैं,
जंगल ख़ुद की आग में जलने लगते हैं.
बच्चों जैसे क़दम हैं मेरी क़िस्मत के,
चलने लग जाएँ तो चलने लगते हैं.
आवाज़ें दीवारें देने लगती हैं,
घर से जब हम दूर निकलने लगते हैं.
क़लम हमारे हाथों में आ जाता है,
जब भी हम शमशीर में ढलने लगते हैं.
हँसता है सूरज ख़ुद के ढल जाने पर,
जुगनू भी जब आग उगलने लगते हैं.
कितनी घुटन हुआ करती है मौसम में,
जब झोंके फूलों को मसलने लगते हैं.
मैं इक ऐसी वारदात का हिस्सा हूँ,
देख के जिसको लोग सम्भलने लगते हैं.
जंगल ख़ुद की आग में जलने लगते हैं.
बच्चों जैसे क़दम हैं मेरी क़िस्मत के,
चलने लग जाएँ तो चलने लगते हैं.
आवाज़ें दीवारें देने लगती हैं,
घर से जब हम दूर निकलने लगते हैं.
क़लम हमारे हाथों में आ जाता है,
जब भी हम शमशीर में ढलने लगते हैं.
हँसता है सूरज ख़ुद के ढल जाने पर,
जुगनू भी जब आग उगलने लगते हैं.
कितनी घुटन हुआ करती है मौसम में,
जब झोंके फूलों को मसलने लगते हैं.
मैं इक ऐसी वारदात का हिस्सा हूँ,
देख के जिसको लोग सम्भलने लगते हैं.
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