Monday 21 April 2014

पूरी उम्र में चाहे पहली बार हुआ,
ख़ामोशी को तन्हाई से प्यार हुआ.

उल्फ़त में जब जुदा यार से यार हुआ,
मजबूरी का अश्क़ों में इज़हार हुआ.

इज़्ज़त पर जब बन आयी तो दीया भी,
तेज़ हवा में जलने को तय्यार हुआ.

खुली नज़र से देख नहीं पाया उसको,
जब की आंखें बंद तभी दीदार हुआ.

रिश्तों में जो बातें ग़ैर ज़रूरी थीं,
आख़िर उन ही बातों पर इक़रार हुआ.

किसी मोड़ पर जब दोनों वीरान हुए,
तब मैं उसका वो मेरा हक़दार हुआ.

जिस काग़ज़ पर ग़ज़ल इश्क़ की लिखनी थी,
वो काग़ज़ ख़बरों वाला अखबार हुआ.

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