Tuesday 29 April 2014

छाँव में बैठ के शाख़ों से शरारत करना,
हमने सीखा है परिंदों से मुहब्बत करना.

हम दरख्तों को बुज़ुर्गों की तरह रखते हैं,
हमको आता है फ़क़ीरों की सोहबत करना.

अपना ईमान बचाने के लिए करना पड़ा,
वरना मुश्किल से खलीफ़ों की ख़िलाफ़त करना.

चाहे दुनिया से हमें शिकवे मिले लाख मगर,
माँ ने सिखलाया नहीं हमको शिकायत करना.

नींद काग़ज़ की तरह हमने बना ली अपनी,
आ गया हमको भी ख़्वाबों की खिताबत करना.

हमने रिश्तों में कभी क़ैद ना काटी होती,
हम भी गर जानते कुनबे से बग़ावत करना.

जान जोख़िम में है उन जलते हुए दीयों की,
सोच कर दोस्त हवाओं की वक़ालत करना.

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