Thursday 10 April 2014

इन आँखों में हर इक मंज़र उसका है,
क़तरा हूँ मैं और समंदर उसका है.

दरवाज़े पर तख्ती है चाहे मेरी,
रहता हूँ मैं जिसमें वो घर उसका है.

उसने जब लिख लिया हथेली पर अपनी,
कहाँ है मेरा अब तो मुक़द्दर उसका है.

अजब हमारे बीच गुफ़्तगू है जिसमें,
हर सवाल मेरा है उत्तर उसका है.

आंधी और तूफ़ान हैं मेरी  ठोकर में,
मेरे घर की नींव में पत्थर उसका है.

तोड़ लिए हैं महलों से रिश्ते अब तो,
जिस  पर सर झुकता है वो दर उसका है.

दुनिया के पिंजरे से छूटा पंछी हूँ,
अब उड़ान उसकी है अम्बर उसका है.

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1 comment:

  1. जवाब नहीं सवाली ..... का

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