इन आँखों में हर इक मंज़र उसका है,
क़तरा हूँ मैं और समंदर उसका है.
दरवाज़े पर तख्ती है चाहे मेरी,
रहता हूँ मैं जिसमें वो घर उसका है.
उसने जब लिख लिया हथेली पर अपनी,
कहाँ है मेरा अब तो मुक़द्दर उसका है.
अजब हमारे बीच गुफ़्तगू है जिसमें,
हर सवाल मेरा है उत्तर उसका है.
आंधी और तूफ़ान हैं मेरी ठोकर में,
मेरे घर की नींव में पत्थर उसका है.
तोड़ लिए हैं महलों से रिश्ते अब तो,
जिस पर सर झुकता है वो दर उसका है.
दुनिया के पिंजरे से छूटा पंछी हूँ,
अब उड़ान उसकी है अम्बर उसका है.
मेरी और ग़ज़लों के लिए देखें मेरा ब्लॉग और वेबसाइट
ghazalsurendra.blogspot.in
www.surendrachaturvedighazal.webs.com
क़तरा हूँ मैं और समंदर उसका है.
दरवाज़े पर तख्ती है चाहे मेरी,
रहता हूँ मैं जिसमें वो घर उसका है.
उसने जब लिख लिया हथेली पर अपनी,
कहाँ है मेरा अब तो मुक़द्दर उसका है.
अजब हमारे बीच गुफ़्तगू है जिसमें,
हर सवाल मेरा है उत्तर उसका है.
आंधी और तूफ़ान हैं मेरी ठोकर में,
मेरे घर की नींव में पत्थर उसका है.
तोड़ लिए हैं महलों से रिश्ते अब तो,
जिस पर सर झुकता है वो दर उसका है.
दुनिया के पिंजरे से छूटा पंछी हूँ,
अब उड़ान उसकी है अम्बर उसका है.
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जवाब नहीं सवाली ..... का
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