दूर-दूर तक दिन की धूप में जलता सहरा देखा था,
सुबह-सुबह ना जाने हमने किसका चेहरा देखा था.
माँ की आँख में होंगे आँसू कब उसने सोचा था ये,
जिस बच्चे ने ख़्वाब में अपने बहता दरिया देखा था.
सोने जैसी धूप में धोका इन आँखों ने यूँ खाया,
जंगल में सीता ने जैसे हिरण सुनहरा देखा था.
पढ़ना उदासी सीख के जब हम पहुंचे शहर की सड़कों पे,
भीड़ में शामिल हर चेहरे को हमने तन्हा देखा था.
सुबह-सुबह वो घर की छत से उतर के आया हौले से,
सारी रात जाग के हमने जिसका रस्ता देखा था.
जिसमें पढ़ती थीं कितनी ही रंग-बिरंगी उम्मीदें,
हमने अपने गाँव का वो ही बंद मदरसा देखा था.
धूप-चांदनी एक साथ थी चारों तरफ़ अँधेरे में,
अपने भीतर क्या बतलाऊं कैसा जलवा देखा था.
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https://www.facebook.com/pages/Surendra-Chaturvedi/1432812456952945?ref=hl
सुबह-सुबह ना जाने हमने किसका चेहरा देखा था.
माँ की आँख में होंगे आँसू कब उसने सोचा था ये,
जिस बच्चे ने ख़्वाब में अपने बहता दरिया देखा था.
सोने जैसी धूप में धोका इन आँखों ने यूँ खाया,
जंगल में सीता ने जैसे हिरण सुनहरा देखा था.
पढ़ना उदासी सीख के जब हम पहुंचे शहर की सड़कों पे,
भीड़ में शामिल हर चेहरे को हमने तन्हा देखा था.
सुबह-सुबह वो घर की छत से उतर के आया हौले से,
सारी रात जाग के हमने जिसका रस्ता देखा था.
जिसमें पढ़ती थीं कितनी ही रंग-बिरंगी उम्मीदें,
हमने अपने गाँव का वो ही बंद मदरसा देखा था.
धूप-चांदनी एक साथ थी चारों तरफ़ अँधेरे में,
अपने भीतर क्या बतलाऊं कैसा जलवा देखा था.
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