बदन में रहते हुए मेरा घर अकेला है,
मैं इक ख़याल हूँ मेरा सफ़र अकेला है.
न जाने कितने हीं मौसम ठहर के चलते बने,
परिंदा आज भी उस पेड़ पर अकेला है.
कई हैं आपके सज़दे में सर झुकाने को,
हज़ूर लेकिन कटाने को सर अकेला है.
नज़र में दूर तलक याद का ही है जंगल,
यहाँ पे मुझसा मगर हर शजर अकेला है.
कहाँ से ढूंढ के लाओगे इसके जैसा तुम,
हज़ार सदमे हैं लेकिन जिगर अकेला है.
यही मैं सोच के उसके गली में जाता हूँ,
मुझे भी देगा सदा वो अगर अकेला है.
ज़रा सा गौर करो और उसको फिर देखो,
ज़माना साथ सही वो मगर अकेला है.
मेरे लाइक पेज को देखने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें,
https://www.facebook.com/pages/Surendra-Chaturvedi/1432812456952945?ref=hl
मैं इक ख़याल हूँ मेरा सफ़र अकेला है.
न जाने कितने हीं मौसम ठहर के चलते बने,
परिंदा आज भी उस पेड़ पर अकेला है.
कई हैं आपके सज़दे में सर झुकाने को,
हज़ूर लेकिन कटाने को सर अकेला है.
नज़र में दूर तलक याद का ही है जंगल,
यहाँ पे मुझसा मगर हर शजर अकेला है.
कहाँ से ढूंढ के लाओगे इसके जैसा तुम,
हज़ार सदमे हैं लेकिन जिगर अकेला है.
यही मैं सोच के उसके गली में जाता हूँ,
मुझे भी देगा सदा वो अगर अकेला है.
ज़रा सा गौर करो और उसको फिर देखो,
ज़माना साथ सही वो मगर अकेला है.
मेरे लाइक पेज को देखने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें,
https://www.facebook.com/pages/Surendra-Chaturvedi/1432812456952945?ref=hl
No comments:
Post a Comment