Wednesday 2 July 2014

उम्र का इक-इक लम्हा रोता रहता है,
बहते हुए भी दरिया रोता रहता है.

मेरे क़दमों मी मायूसी को पढ़कर,
सफ़र में अक्सर रस्ता रोता रहता है.

अजब शख्स है हँसता भी है तो उसके,
कंधे पर इक चेहरा रोता रहता है.

कौन है ये दीवाना जो मुझमें आकर,
तन्हा बैठ के हँसता-रोता रहता है.

गाँव छोड़ कर जब से शहर गई है माँ,
तुलसी का इक पौधा रोता रहता है.

कमरे में माँ-बाप ठिठोली करते हैं,
घर की छत पर बच्चा रोता रहता है.

पेड़ों को अहसास है इसका शिद्दत से,
शाख़ से टूट के पत्ता रोता रहता है.

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