ये किस मोड़ पर ले आये हालात मुझे,
लोग दुआ देते हैं या खैरात मुझे.
इनके हैं अहसान कई मेरे सिर पर ,
कितने सबक़ सिखाते हैं सदमात मुझे .
ख़ुद से बातें करना अजब तजुर्बा है,
लगती है हर बात नई सी बात मुझे .
पेड समझ कर बाहों में ले लेती है,
जब जंगल में मिलती है बरसात मुझे .
ज़ख्म गुलाबी होकर ख़ुशबू देते हैं,
दर्द थमा जाते हैं जब नग्मात मुझे.
यादों का मैं गुनहगार हो जाता हूँ,
कम लगने लगते हैं जब दिन -रात मुझे .
छुडा गये तुम हाथ मगर देखो अब तक,
होते हैं महसूस हाथ में हाथ मुझे .
लोग दुआ देते हैं या खैरात मुझे.
इनके हैं अहसान कई मेरे सिर पर ,
कितने सबक़ सिखाते हैं सदमात मुझे .
ख़ुद से बातें करना अजब तजुर्बा है,
लगती है हर बात नई सी बात मुझे .
पेड समझ कर बाहों में ले लेती है,
जब जंगल में मिलती है बरसात मुझे .
ज़ख्म गुलाबी होकर ख़ुशबू देते हैं,
दर्द थमा जाते हैं जब नग्मात मुझे.
यादों का मैं गुनहगार हो जाता हूँ,
कम लगने लगते हैं जब दिन -रात मुझे .
छुडा गये तुम हाथ मगर देखो अब तक,
होते हैं महसूस हाथ में हाथ मुझे .
No comments:
Post a Comment