Friday 11 July 2014

मौसम से हम जब भी गुज़ारिश करते हैं,
अब्र मेहरबां होकर बारिश करते हैं.    (अब्र = बादल)

जब भी नज़ूमी क़िस्मत पढ़ते हैं मेरी,    (नज़ूमी = ज्योतिषी)
चाँद-सितारे मेरी सिफ़ारिश करते हैं.

बदन किसी के नाम मुक़र्रर है अपना,
बाज़ारों में नहीं नुमाईश करते हैं.

नहीं बुझा पायेंगे ये कह दो इसे,
मिलके हवाओं से जो साज़िश करते हैं.

हम ज़मीन से ही रखते हैं हर  रिश्ता,
आसमान की हम कब ख्वाहिश करते हैं.

लाख दरिया सामने औ" हम प्यासे हों,
क़तरे तक की कब फ़रमाईश करते हैं.

क़दमों में बिछ जाते हैं कालीनों से,
जब  बुज़ुर्ग हमसे समझाईश करते  हैं.

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