रेत के ऊपर उड़ते बादल जैसा तू,
या फिर माँ के उड़ते आँचल जैसा तू,
घुंघरू बनकर बज उठते हैं शाम-सुबह,
दुल्हन के पांवों की पायल जैसा तू.
ताक में जैसे जलता दीया रखा हुआ,
और दीये में पलते काजल जैसा तू.
तुझमें उगे हुए पेड़ों के जैसा मैं,
दूर-दूर तक फैले जंगल जैसा तू.
तेरे पीछे बच्चों जैसा फिरता हूँ,
दीवाना है या फिर पागल जैसा तू.
मन मेरा है लिपटे हुए कलाये सा, (कलाये = कलाई में बाँधने वाला धागा)
मुझमें उगे हुए इक पीपल जैसा तू.
मुझमें ग़ज़लों का गुलज़ार बगीचा है,
कूक रहा है जिसमें कोयल जैसा तू.
मेरे लाइक पेज को देखने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें,
https://www.facebook.com/pages/Surendra-Chaturvedi/1432812456952945?ref=hl
या फिर माँ के उड़ते आँचल जैसा तू,
घुंघरू बनकर बज उठते हैं शाम-सुबह,
दुल्हन के पांवों की पायल जैसा तू.
ताक में जैसे जलता दीया रखा हुआ,
और दीये में पलते काजल जैसा तू.
तुझमें उगे हुए पेड़ों के जैसा मैं,
दूर-दूर तक फैले जंगल जैसा तू.
तेरे पीछे बच्चों जैसा फिरता हूँ,
दीवाना है या फिर पागल जैसा तू.
मन मेरा है लिपटे हुए कलाये सा, (कलाये = कलाई में बाँधने वाला धागा)
मुझमें उगे हुए इक पीपल जैसा तू.
मुझमें ग़ज़लों का गुलज़ार बगीचा है,
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