Friday 18 July 2014

मुफ़लिस और मज़दूरों की जागीर हूँ मैं,
जाने कितने लोगो की तक़दीर हूँ मैं.

यारी हो तो सर भी कटाने को हाज़िर,
अगर दुश्मनी हो तो इक शमशीर हूँ मैं.    (शमशीर = तलवार)

यूँ तो हवाओं के क़दमों का घुंघरू हूँ,
तूफ़ानों के पांवों की जंज़ीर हूँ मैं.

कितने ही लोगों की टेढ़ी नज़रें हैं,
कभी-कभी तो लगता है कश्मीर हूँ मैं.

वक़्त ने कितने ही रंगों से रंगा मुझे,
आने वाले कल की इक तस्वीर हूँ मैं.

कल मुझको ख़ुद वक़्त शौक़ से पढ़ता था,
आज भले ही मिटी हुई तहरीर हूँ मैं.    (तहरीर = लिखावट)

दिल मेरी ग़ज़लों को सुन कर बोल उठा,
करवट लेते नए दौर का मीर हूँ मैं.    (मीर = एक शायर का नाम)

मेरे लाइक पेज को देखने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें,
https://www.facebook.com/pages/Surendra-Chaturvedi/1432812456952945?ref=hl

मेरी और ग़ज़लों के लिए देखें मेरा ब्लॉग,
ghazalsurendra.blogspot.in

No comments:

Post a Comment