कड़ी धूप और लम्बे सफ़र में पेड़ का साया होते हैं,
सहराओं में रहने वाले लोग मसीहा होते हैं.
सूरज को उगने से पहले मर जाते हैं नींदों में,
वो के वो ही ख़्वाब रात में फिर से ज़िन्दा होते हैं.
चट्टानों की मज़बूती तो सिर्फ़ दिखावे जैसी थी,
टूट के बिखरे तब ये जाना लोग आईना होते हैं.
बुरे वक़्त में खुल जाते हैं जो भीतर और बाहर से,
सच पूछो माँ-बाप ही जन्नत का दरवाज़ा होते हैं.
सहराओं की प्यास बुझाने कहाँ समंदर आता है,
ये तो दरिया ही हैं जो फ़ितरत से फ़रिश्ता होते हैं.
तन्हाई जागीर में हमको दी है मगर अ-सुल्तानों,
क्या बतलायें तन्हाई में हम भी क्या-क्या होते हैं.
वही मेरी ग़ज़लों में सांसे लेने लगते हैं आकर,
सूखे ज़ख्मों की ज़मीन पे दर्द जो पैदा होते हैं.
मेरे लाइक पेज को देखने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें,
https://www.facebook.com/pages/Surendra-Chaturvedi/1432812456952945?ref=hl
सहराओं में रहने वाले लोग मसीहा होते हैं.
सूरज को उगने से पहले मर जाते हैं नींदों में,
वो के वो ही ख़्वाब रात में फिर से ज़िन्दा होते हैं.
चट्टानों की मज़बूती तो सिर्फ़ दिखावे जैसी थी,
टूट के बिखरे तब ये जाना लोग आईना होते हैं.
बुरे वक़्त में खुल जाते हैं जो भीतर और बाहर से,
सच पूछो माँ-बाप ही जन्नत का दरवाज़ा होते हैं.
सहराओं की प्यास बुझाने कहाँ समंदर आता है,
ये तो दरिया ही हैं जो फ़ितरत से फ़रिश्ता होते हैं.
तन्हाई जागीर में हमको दी है मगर अ-सुल्तानों,
क्या बतलायें तन्हाई में हम भी क्या-क्या होते हैं.
वही मेरी ग़ज़लों में सांसे लेने लगते हैं आकर,
सूखे ज़ख्मों की ज़मीन पे दर्द जो पैदा होते हैं.
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