कहाँ चेहरा मेरा बिखरा हुआ था,
मेरा तो आईना टूटा हुआ था.
मेरी प्यासी निग़ाहों के ही अन्दर,
समंदर दूर तक फैला हुआ था.
कहीं उसमें उदासी रो रही थी,
मगर दामन मेरा भीगा हुआ था.
नशेमन था मेरा उस पेड़ पर ही,
जहाँ पर सांप भी बैठा हुआ था.
सिसकता दर्द ये जुड़वां है मेरा,
मेरे ही साथ मैं पैदा हुआ था.
जड़ें बेजान, पानी में खड़ी थीं,
शजर मुझमें कोई सूखा हुआ था.
वही लिपटा था क्यूँ मेरे क़फ़न में,
जिसे बिछुड़े हुए अर्सा हुआ था.
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https://www.facebook.com/pages/Surendra-Chaturvedi/1432812456952945?ref=hl
मेरा तो आईना टूटा हुआ था.
मेरी प्यासी निग़ाहों के ही अन्दर,
समंदर दूर तक फैला हुआ था.
कहीं उसमें उदासी रो रही थी,
मगर दामन मेरा भीगा हुआ था.
नशेमन था मेरा उस पेड़ पर ही,
जहाँ पर सांप भी बैठा हुआ था.
सिसकता दर्द ये जुड़वां है मेरा,
मेरे ही साथ मैं पैदा हुआ था.
जड़ें बेजान, पानी में खड़ी थीं,
शजर मुझमें कोई सूखा हुआ था.
वही लिपटा था क्यूँ मेरे क़फ़न में,
जिसे बिछुड़े हुए अर्सा हुआ था.
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