जब भी ख़त के जवाब पढ़ता था,
अपनी आँखों के ख़्वाब पढ़ता था.
वो मदरसा कभी गया ही नहीं,
बस वो दिल की क़िताब पढ़ता था.
उसका जलवा-ए-नूर था ऐसा, (जलवा-ए-नूर = रौशनी का जलवा)
उसको ख़ुद आफ़ताब पढ़ता था. (आफ़ताब = सूरज)
तुमने चेहरे पढ़े हैं लेकिन वो,
उन पे जो थे नक़ाब पढ़ता था.
नेकियाँ करके उसके बदले में,
क्या मिलेगा सबाब पढ़ता था. (सबाब = पुण्य)
शौक़ कितना अजीब था उसका,
मुझको, पीकर शराब पढ़ता था.
वक़्त जैसा मिजाज़ था उसका,
वो ग़ज़ल सबके बाद पढ़ता था.
मेरे लाइक पेज को देखने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें,
https://www.facebook.com/pages/Surendra-Chaturvedi/1432812456952945?ref=hl
अपनी आँखों के ख़्वाब पढ़ता था.
वो मदरसा कभी गया ही नहीं,
बस वो दिल की क़िताब पढ़ता था.
उसका जलवा-ए-नूर था ऐसा, (जलवा-ए-नूर = रौशनी का जलवा)
उसको ख़ुद आफ़ताब पढ़ता था. (आफ़ताब = सूरज)
तुमने चेहरे पढ़े हैं लेकिन वो,
उन पे जो थे नक़ाब पढ़ता था.
नेकियाँ करके उसके बदले में,
क्या मिलेगा सबाब पढ़ता था. (सबाब = पुण्य)
शौक़ कितना अजीब था उसका,
मुझको, पीकर शराब पढ़ता था.
वक़्त जैसा मिजाज़ था उसका,
वो ग़ज़ल सबके बाद पढ़ता था.
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