Tuesday 1 July 2014

तुझसे जब-जब भी आशिक़ी होगी,
मेरे होठों पे शायरी होगी.

मैं हूँ सूरज ये मैंने जान लिया,
मैं जलूँगा तो रौशनी होगी.

भीगता मैं रहुंगा भीतर से,
ऐसी बरसात भी कभी होगी.

लौट आया है तू जुदा होकर,
मुझमें कुछ बात तो रही होगी.

मैं किनारों की शक्ल ले लूँगा,
पास जब नूर की नदी होगी.

मुझको जिस हाल में रखेगा तू,
मुझको उस हाल में ख़ुशी होगी.

मैं समंदर को पी के प्यासा रहूँ,
मेरी ख्वाहिश ये आख़िरी होगी.


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