जो हैं बंद कबसे वो घर बोलते हैं,
गुनाहों में भीतर के डर बोलते हैं.
जो हैं बोलने वाले सच्चाईयों के,
ज़ुबां कट भी जाए मगर बोलते हैं.
हवा जब गुज़रती है तन्हाइयों से,
नदी के किनारे शजर बोलते हैं. (शजर = पेड़)
परिंदों को मंज़िल मिलेगी यक़ीनन,
ये फैले हुए उनके पर बोलते हैं.
इन्हें आबो-दाना है मिलता जिधर से,
ये पंछी हमेशा उधर बोलते हैं.
वही लोग रहते हैं ख़ामोश यारो,
ज़माने में जिनके हुनर बोलते हैं.
बुलंदी पे कितने थे उनके इरादे,
ये काटे हुए उनके सर बोलते हैं.
हैं कैसी अजब बस्तियाँ ये शहर की,
ना आपस में जिनके बशर बोलते हैं. (बशर = लोग)
मेरे लाइक पेज को देखने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें,
https://www.facebook.com/pages/Surendra-Chaturvedi/1432812456952945?ref=hl
गुनाहों में भीतर के डर बोलते हैं.
जो हैं बोलने वाले सच्चाईयों के,
ज़ुबां कट भी जाए मगर बोलते हैं.
हवा जब गुज़रती है तन्हाइयों से,
नदी के किनारे शजर बोलते हैं. (शजर = पेड़)
परिंदों को मंज़िल मिलेगी यक़ीनन,
ये फैले हुए उनके पर बोलते हैं.
इन्हें आबो-दाना है मिलता जिधर से,
ये पंछी हमेशा उधर बोलते हैं.
वही लोग रहते हैं ख़ामोश यारो,
ज़माने में जिनके हुनर बोलते हैं.
बुलंदी पे कितने थे उनके इरादे,
ये काटे हुए उनके सर बोलते हैं.
हैं कैसी अजब बस्तियाँ ये शहर की,
ना आपस में जिनके बशर बोलते हैं. (बशर = लोग)
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