Sunday 23 March 2014

यहाँ वहां से लौट के मुझमें आना है,
तन्हाई का कहाँ पे ठौर ठिकाना है.

सुनती और सुनाती मुझको ख़ामोशी,
बिन अल्फ़ाज़ों का मेरा अफ़साना है.

सहराओं के बाद नज़र जो आता है,
उस दरिया से ही अपना याराना है.

दरवाज़ों की कुंदी पर तो ताले हैं,
घर के भीतर सदियों का वीराना है.

वाकिफ़ हैं मेरी मेहमान-नवाज़ी से,
दुःख दर्दों का घर पर आना जाना है,

उम्र काट ली इसमें पता नहीं कैसे,
जान के ये भी बदन मेरा  बेगाना है.

ख़ुद की धड़कन ख़ुद सुनकर ख़ुश होता है,
दिल मेरा दीवाना है, मस्ताना है.

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