मैं ज़मीर के आसमान पर होता हूँ,
जब क़ायम अपने बयान पर होता हूँ.
जुबां पर मेरी नाम जो उसका आता है,
मैं भी तब उसकी ज़ुबान पर होता हूँ.
दूर रहे तू मुझसे या तू पास रहे,
हर सूरत, मैं इम्तिहान पर होता हूँ.
जब ख़ुद में तुझको आवाज़ लगाता हूँ,
मस्ज़िद से आती अज़ान पर होता हूँ.
क़दम चूमने की ख्वाहिश में अक्सर मैं,
तेरे दर के पायदान पर होता हूँ.
पानी की मानिन्द है मेरी फ़ितरत भी,
जब भी बहता हूँ, ढलान पर होता हूँ.
किसी भी रस्ते से तू गुज़रे मैं लेकिन,
तेरे क़दमों के निशान पर होता हूँ.
जब क़ायम अपने बयान पर होता हूँ.
जुबां पर मेरी नाम जो उसका आता है,
मैं भी तब उसकी ज़ुबान पर होता हूँ.
दूर रहे तू मुझसे या तू पास रहे,
हर सूरत, मैं इम्तिहान पर होता हूँ.
जब ख़ुद में तुझको आवाज़ लगाता हूँ,
मस्ज़िद से आती अज़ान पर होता हूँ.
क़दम चूमने की ख्वाहिश में अक्सर मैं,
तेरे दर के पायदान पर होता हूँ.
पानी की मानिन्द है मेरी फ़ितरत भी,
जब भी बहता हूँ, ढलान पर होता हूँ.
किसी भी रस्ते से तू गुज़रे मैं लेकिन,
तेरे क़दमों के निशान पर होता हूँ.
No comments:
Post a Comment