वक़्त की हर सच्चाई अच्छी लगती है,
अच्छों को अच्छाई अच्छी लगती है.
कहाँ मिला करते हैं ऐसे लोग जिन्हें,
भीड़ में भी तन्हाई अच्छी लगती है.
धूप में अक्सर ये होता है पेड़ों को,
अपनी ही परछाई अच्छी लगती है.
हाथ थाम लेता है कोई जब आकर,
रस्तों की लम्बाई अच्छी लगती है.
जुड़ जाता है नाम तेरा जब भी मुझसे,
मुझको हर रुसवाई अच्छी लगती है.
पानी की जब बूँद नहीं होती ख़ुद में,
कूओं को तब खाई अच्छी लगती है.
राई भी जब ख़ुद पहाड़ बन जाती है,
तब पहाड़ को राई अच्छी लगती है.
अच्छों को अच्छाई अच्छी लगती है.
कहाँ मिला करते हैं ऐसे लोग जिन्हें,
भीड़ में भी तन्हाई अच्छी लगती है.
धूप में अक्सर ये होता है पेड़ों को,
अपनी ही परछाई अच्छी लगती है.
हाथ थाम लेता है कोई जब आकर,
रस्तों की लम्बाई अच्छी लगती है.
जुड़ जाता है नाम तेरा जब भी मुझसे,
मुझको हर रुसवाई अच्छी लगती है.
पानी की जब बूँद नहीं होती ख़ुद में,
कूओं को तब खाई अच्छी लगती है.
राई भी जब ख़ुद पहाड़ बन जाती है,
तब पहाड़ को राई अच्छी लगती है.
No comments:
Post a Comment