Monday 24 March 2014

मुझे आँधियों में जो चलना पड़ेगा,
हवाओं को रुख भी बदलना पड़ेगा.

मुझे बेड़ियों में जकड़ तो रहा है,
तुझे मेरे पांवों से चलना पड़ेगा.

तू सूरज की मानिंद उग तो गया है,
मगर शाम होते ही ढलना पड़ेगा.

बना मोम का दिल तभी जानता था,
उसे जलते जलते पिघलना पड़ेगा.

जिसे चाहते हो उसे गर है पाना,
तुम्हें ख़ुद से बाहर निकलना पड़ेगा.

लिखा नाम तेरा मुझे कब ख़बर थी,
उन्हीं काग़ज़ों को मसलना पड़ेगा.

अगर धूप तू है मेरे इस सफ़र की,
तुझे मेरे साए में ढलना पड़ेगा.


1 comment:

  1. bahot achi ghazal hai surendra ji. Kya aapki likhi ghazal ka collection book mil sakti hai online?

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