Sunday 10 August 2014

बिछुड़े बेटे से जैसे मिले कोई माँ,
मुझको ऐसे मिली सूफ़ियों की ज़ुबां.

ख़ुद से हम जब मिले भी तो ऐसे मिले,
बारिशों में मिले जैसे जलता मकाँ.

मैं ज़मीं था मगर मेरी ज़िद ये रही,
मुझको छूने की ख़ातिर झुके आसमां.

मेरा होकर भी तूने रखी दूरियाँ,
तू कहाँ मैं कहाँ, मैं कहाँ तू कहाँ.

पंछियों की तरह मैंने पाला इन्हें,
यूँ नहीं हो गए ख़्वाब मेरे जवाँ.

मेरे बाहर  कड़ी धूप का था सफ़र,
मेरे अन्दर था लेकिन कोई सायबां.   सायबां = छायादार

मेरी नज़रों में तू जो रहा उम्र भर,
मेरी साँसों का चलता रहा कारवाँ.

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