Tuesday 26 August 2014

मुझे कुछ इस तरह महबूब का दर मिल गया है,
किसी बच्चे को ज्यूँ खोया हुआ घर मिल गया है.

बदन तो रेत का है मैं मगर इसमें बहूँगा ,
मुझे इस रेत में गहरा समंदर मिल गया है.

मेरे सर को कुचलने की जो साज़िश में लगा था ,
मुझे अपने ही घर में अब वो पत्थर मिल गया है.

मुझे छू कर मुक़द्दर ने कहा हैरान हो कर,
तुझे पाकर मुझे मेरा मुक़द्दर मिल गया है.

जहाँ तुम कह रहे हो राज करता है अँधेरा ,
वहां की है ख़बर अंधे को तीतर मिल गया है.

नहीं है करबला तो फिर जगह ये कौनसी है,
यहाँ कैसे कोई काटा हुआ सर मिल गया है.

पसीने की वो बदबू से परेशां हो रहे हैं,
किसी मजदूर का लगता है बिस्तर मिल गया है.

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