ये भी सच है दरियाओं से अपनी फ़ितरत मिलती है,
लेकिन फिर भी सहराओं से जाकर क़िस्मत मिलती है.
तूफ़ानों के बाद नशेमन फिर से बनाने लगते हैं,
देख परिंदों की हिम्मत को कितनी हिम्मत मिलती है.
जाने कौन-कौन सी दुनिया ढूंढ रहे इस दुनिया में,
ख़ुद में पल तो पल रहने की किसको फ़ुर्सत मिलती है.
हम अपने ज़मीर को गिरवी कब रखने बाज़ार गए,
जान के भी ऐसे लोगों को अच्छी क़ीमत मिलती है.
सूरज के वारिस होकर भी खड़े अँधेरे के आगे,
देख रहे हैं ख़ानदान की किसे वसीयत मिलती है.
दुआ बुज़ुर्गों की पाकर ही हमने ये महसूस किया,
दौलत, शौहरत, शानो-शौक़त और हैसियत मिलती है.
दरग़ाहें आवाज़ लगाने लगती हैं मुझको अक्सर,
ना जाने अब किस फ़क़ीर से अपनी सूरत मिलती है.
मेरे लाइक पेज को देखने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें,
https://www.facebook.com/pages/Surendra-Chaturvedi/1432812456952945?ref=hl
लेकिन फिर भी सहराओं से जाकर क़िस्मत मिलती है.
तूफ़ानों के बाद नशेमन फिर से बनाने लगते हैं,
देख परिंदों की हिम्मत को कितनी हिम्मत मिलती है.
जाने कौन-कौन सी दुनिया ढूंढ रहे इस दुनिया में,
ख़ुद में पल तो पल रहने की किसको फ़ुर्सत मिलती है.
हम अपने ज़मीर को गिरवी कब रखने बाज़ार गए,
जान के भी ऐसे लोगों को अच्छी क़ीमत मिलती है.
सूरज के वारिस होकर भी खड़े अँधेरे के आगे,
देख रहे हैं ख़ानदान की किसे वसीयत मिलती है.
दुआ बुज़ुर्गों की पाकर ही हमने ये महसूस किया,
दौलत, शौहरत, शानो-शौक़त और हैसियत मिलती है.
दरग़ाहें आवाज़ लगाने लगती हैं मुझको अक्सर,
ना जाने अब किस फ़क़ीर से अपनी सूरत मिलती है.
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