सच है दाने-दाने को हम उसके ही मोहताज़ रहे,
लेकिन साथ ना छोड़ा चाहे कुनबे से नाराज़ रहे,
दुनिया के किरदार हज़ारों हमने जी कर देख लिए,
अलग तौर से लेकिन अपने जीने के अंदाज़ रहे,
कहते हैं अब बनवायेंगे वो भी हवेली शीशे की,
ख़ानदान में जिनके सारे लोग निशानेबाज़ रहे.
शाख़ छोड़ते वक़्त हमेशा पेड़ दुआ देता है ये,
तेज़ हवा में सही सलामत पंछी की परवाज़ रहे,
उस दर के दरबान रहे हम, उसकी गुलामी की हमने,
वो जिसके क़दमों में दुनिया भर के तख़्त-ओ-ताज़ रहे,
अपने हक़ में हाथ उठाना आता है हमको लेकिन,
मुफ़लिस और मज़लूमों की ही बनकर हम आवाज़ रहे, (मज़लूमों = बेसहारा)
वो जो कुछ भी बोला मुझमें सिर्फ़ उसी को दोहराया,
अपनी हर इक ग़ज़ल में शामिल उसके ही अलफ़ाज़ रहे.
लेकिन साथ ना छोड़ा चाहे कुनबे से नाराज़ रहे,
दुनिया के किरदार हज़ारों हमने जी कर देख लिए,
अलग तौर से लेकिन अपने जीने के अंदाज़ रहे,
कहते हैं अब बनवायेंगे वो भी हवेली शीशे की,
ख़ानदान में जिनके सारे लोग निशानेबाज़ रहे.
शाख़ छोड़ते वक़्त हमेशा पेड़ दुआ देता है ये,
तेज़ हवा में सही सलामत पंछी की परवाज़ रहे,
उस दर के दरबान रहे हम, उसकी गुलामी की हमने,
वो जिसके क़दमों में दुनिया भर के तख़्त-ओ-ताज़ रहे,
अपने हक़ में हाथ उठाना आता है हमको लेकिन,
मुफ़लिस और मज़लूमों की ही बनकर हम आवाज़ रहे, (मज़लूमों = बेसहारा)
वो जो कुछ भी बोला मुझमें सिर्फ़ उसी को दोहराया,
अपनी हर इक ग़ज़ल में शामिल उसके ही अलफ़ाज़ रहे.
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