Friday 22 August 2014

मुझको गाते हैं अँधेरे रोशनी का गीत हूँ,
मौत चाहे लिख रही हो ज़िन्दगी का गीत हूँ.

मुझको दरियाओं ने चाहे शोर में दफ़ना दिया,
मैं किनारों पर लिखा इक तिश्नगी का गीत हूँ.

मंदिरों और मस्ज़िदों में परवरिश ना पा सका,
उस ही मालिक की मगर में बंदगी का गीत हूँ.

मुझको फूलों ने लिखा है तितलियों के पंख से,
ख़ुश्बूओं वाली किसी मैं डायरी का गीत हूँ.

एक दिन दुश्मन भी मुझको दिल से अपने गायेंगे ,
मैं हूँ रिश्तों की इबादत दोस्ती का गीत हूँ.

मेरे अश्कों की इबारत कह रही है आज भी,
आने वाले कल के बच्चों की हंसी का गीत हूँ.

मेरे हर अल्फ़ाज़ को अपना समझ कर तुम पढ़ो,
इस तरह से गाओ जैसे आपका ही गीत हूँ.

मेरी ख़ुद्दारी से ये मेरे उसूलों ने कहा ,
धूप की तू शायरी मैं चांदनी का ग़ीत हूँ.

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