Friday 8 August 2014

मेरा यार इश्क़ के ऐसे इक अफ़साने जैसा है,
लिखा पुराने वक़्त ने लेकिन नए ज़माने जैसा है.

मेरे यार का होना मुझमें कैसा है ये पूछ ना तू,
ख़ुदा के घर में छिपा के रक्खे हुए ख़ज़ाने जैसा है.

मेरा यार तो दीवानों की भीड़ में ही रहता है गुम,
कौन उसे पहचान सकेगा किस दीवाने जैसा है.

मंदिर, मस्ज़िद, गिरज़ाघर और गुरुद्वारे में गया नहीं,
मेरा यार तो ख़ुद क़ुदरत के इक नज़राने जैसा है.

मेरे यार से जुड़ना लेकिन इतना भी आसान नहीं,
सब के साथ में रहता है लेकिन बेगाने जैसा है.

इस दुनिया से उस दुनिया तक मेरे यार का  है रूतबा,
मेरे यार के नाम का लोहा हर कोई माने जैसा है.

यारी रखकर अपने यार से मैंने जान लिया है ये,
दुनिया में बस यार ही मेरा दिल में  बसाने जैसा है.

मेरे लाइक पेज को देखने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें,
https://www.facebook.com/pages/Surendra-Chaturvedi/1432812456952945?ref=hl


No comments:

Post a Comment