Thursday 28 August 2014

कुछ न होगा वक़्त की तब्दीलियों को देख कर,
गर संभल जाओगे अपनी ग़लतियों को देख कर.

देख कर औलाद का ग़म रो पड़ा वो इस तरह ,
जैसे दरिया रो पड़ा हो मछलियों को देख कर.

जंग के मैदान से बेटे ने लिक्खीं थी कभी,
आज भी रोती है माँ उन चिठ्ठियों को देख कर.

जिनके हाथों में नहीं बस्ते मगर बन्दूक हैं,
कांप जाता है ये दिल उन उँगलियों को देख कर.

दोस्ती अपनी है रंगों से इबादत की तरह,
अब भी हो जाता हूँ बच्चा तितलियों को देख कर.

इस यकीं पर ख्व़ाब खेतों में उगेंगे एक दिन,
कितना ख़ुश होता हूँ उड़ती बदलियों को देख कर.

छप्परों ने जब से अपने आप को पुख्ता किया,
अब नहीं डरता मेरा घर बिजलियों को देख कर .

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