Friday 29 August 2014

तू जब तक नाम का दरिया रहा था,
मैं तब भी साथ में प्यासा रहा था.
जिसे अपनी नज़र तू कह रहा है,
मैं उसमें मुद्दतों तन्हा रहा था.
तेरी यादों की अब जो है हवेली,
वहां मेरा कभी कब्ज़ा रहा था.
बिना तेरे भी मैं तन्हा नहीं हूँ,
तू भी मेरे साथ भी तन्हा रहा था.
नहीं कुछ भी नहीं हुआ अब मैं तेरा,
मगर सच-सच बता क्या-क्या रहा था.
हमेशा मैं तो तेरा ही था लेकिन,
नहीं लगता है तू मेरा रहा था.
मुहब्बत थी हमारे बीच में कब,
हमरे बीच तो सौदा रहा था.

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