Saturday 30 August 2014

वो समंदर मुझे दिखाता है,
फिर मेरा सब्र आज़माता है.

पहले पत्थर हमें डराते थे,
अब हमें आईना डराता है.

तैरना तू सिखा समंदर अब,
डूबना तो हमें भी आता है.

ये बुझाने के काम आएगा,
आग पानी में क्यों लगाता है.

तेरी आवाज़ ये सुनेंगे नहीं,
ये तो मुर्दे हैं क्यों जगाता है.

गिरने वाली हैं ख़ुद ये दीवारें,
तू इन्हें किसलिए गिराता है.

लाइक पेज को देखने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें,
https://www.facebook.com/pages/
-Chaturvedi/1432812456952945?ref=hl

मेरी और ग़ज़लों के लिए देखें मेरा ब्लॉग
ghazalsurendra.blogspot.in

No comments:

Post a Comment