Friday 13 June 2014

था ढाल कौन औ" मेरी तलवार कौन था,
पूरे शहर में मेरा बता यार कौन था.

हम जिस्मों-जाँ से एक थे तो क्यूँ ना मिल सके,
आख़िर हमारे बीच की दीवार कौन था.

वारिस सभी थे मेरी वसीयत के अ-ख़ुदा,
लेकिन बता कि मेरा तलबगार कौन था.

जन्नत के लिए लोग खड़े थे क़तार में,
मिलने के लिए मौत से तय्यार कौन था.

खैरात बन के रिश्तों में तक़सीम हो गया,     (तक़सीम = बंट जाना)
मुझको नहीं पता मेरा हक़दार कौन था.

गंगा कभी ली हाथ में, क़ुरआन ली कभी,
सब पारसा ही थे तो गुनहगार कौन था.        (पारसा = पवित्र)

तू गर नहीं था मुझमें तो फिर ये बता मुझे,
मुझमें तेरी ही शक्ल का किरदार कौन था.

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