जब जिसने तेरा अफ़साना सुना दिया,
सज़दे में मैंने अपना सर झुका दिया.
आसमान के गिर जाने का डर था उसे,
उसने घर की छत से पंछी उड़ा दिया.
हवा ना साया, फूल ना खुशबु फल देगा,
आँगन में ये कैसा पौधा उगा दिया.
मैंने उसकी ज़ीश्त के पन्ने जब खोले, (ज़ीश्त = ज़िन्दगी)
उसने मेरी मौत का मुद्दा उठा दिया.
ख़ुद्दारी में तेरा सर तो झुका नहीं,
भीड़ ने उसको देख मसीहा बना दिया.
फिर से मेरा नाम वो लिखना सीख रहा,
जिसका मैंने नाम कभी का मिटा दिया.
जिसके घर पर ग़ज़लों पर पाबन्दी थी,
उसको भी इक शेर तो मैंने सुना दिया.
मेरे लाइक पेज को देखने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें,
https://www.facebook.com/pages/Surendra-Chaturvedi/1432812456952945?ref=hl
सज़दे में मैंने अपना सर झुका दिया.
आसमान के गिर जाने का डर था उसे,
उसने घर की छत से पंछी उड़ा दिया.
हवा ना साया, फूल ना खुशबु फल देगा,
आँगन में ये कैसा पौधा उगा दिया.
मैंने उसकी ज़ीश्त के पन्ने जब खोले, (ज़ीश्त = ज़िन्दगी)
उसने मेरी मौत का मुद्दा उठा दिया.
ख़ुद्दारी में तेरा सर तो झुका नहीं,
भीड़ ने उसको देख मसीहा बना दिया.
फिर से मेरा नाम वो लिखना सीख रहा,
जिसका मैंने नाम कभी का मिटा दिया.
जिसके घर पर ग़ज़लों पर पाबन्दी थी,
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