भरा हुआ बादल हूँ मैं,
लेकिन कुछ पागल हूँ मैं.
अंधे मुझको लगा रहे,
ये कैसा काजल हूँ मैं.
खुले हुए दरवाज़े की,
जैसे इक साँकल हूँ मै.
कौन पूछने आएगा,
कटा हुआ पीपल हूँ मैं,
बोतल में ही क़ैद रहा,
लेकिन गंगाजल हूँ मैं.
मुझको तुम क्या ओढ़ोगे,
क़ैदी का कम्बल हूँ मैं.
मैं पैबंद हूँ बोरी का,
वर्ना तो मखमल हूँ मैं.
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https://www.facebook.com/pages/Surendra-Chaturvedi/1432812456952945?ref=hl
लेकिन कुछ पागल हूँ मैं.
अंधे मुझको लगा रहे,
ये कैसा काजल हूँ मैं.
खुले हुए दरवाज़े की,
जैसे इक साँकल हूँ मै.
कौन पूछने आएगा,
कटा हुआ पीपल हूँ मैं,
बोतल में ही क़ैद रहा,
लेकिन गंगाजल हूँ मैं.
मुझको तुम क्या ओढ़ोगे,
क़ैदी का कम्बल हूँ मैं.
मैं पैबंद हूँ बोरी का,
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