Thursday 5 June 2014

मेरी आँखों में सहराओं का मंज़र सो रहा है,
मगर भीतर कहीं मेरे समंदर सो रहा है.

वही है ये कि जिसने सारी दुनिया जीत ली थी,
खुली है मुट्ठियाँ देखो सिकंदर सो रहा है.

यहाँ पर बेगुनाहों को नहीं आती हैं नींदे,
सितम करके यहाँ लेकिन सितमगर सो रहा है.

है बच्चा गोद में माँ की तो मुझको लग रहा ये,
ज़मीं की गोद में जैसे कि अम्बर सो रहा है.

नहीं सुल्तान चाहे सो सका फूलों के ऊपर,
मगर काटों के बिस्तर पर क़लन्दर सो रहा है.

अभी जागेगा सारे ग़म करेगा दूर तेरे,
अभी कुछ देर को शायद पयम्बर सो रहा है.     (पयम्बर = ईश्वर का अवतार)

बड़ी मुद्दत से मैं नींदों में जिसकी जागता हूँ,
कोई तो शख्स है जो मेरे अन्दर सो रहा है.

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