Sunday 8 June 2014

ज़मीं पे ला के अम्बर रख दूँ,
तुझमें एक समंदर रख दूँ.

बन जाऊं मैं अगर परिंदा,
जहाँ भी चाहूँ मैं घर रख दूँ.

रोना है जी भर कर मुझको,
कंधे पर तेरे सर रख दूँ.

तुझे तसल्ली मिल जाए तो,
मैं सीने पर पत्थर रख दूँ.

आंधी से तू अगर बचा ले,
कच्चे घर पर छप्पर रख दूँ.

गर मेरी उड़ान पर शक़ है,
काट के मैं अपने पर रख दूँ.

सफ़र में तू भी साथ चले तो,
छिपा के मैं सारे डर रख दूँ.


No comments:

Post a Comment