यूँ तो रिश्ता मेरा सभी से था,
मेरा होना मगर उसी से था.
घर था रोशन कहाँ चरागों से,
वो तो अन्दर की रौशनी से था.
ये है सच मेरी उम्र का हांसिल,
उसके होठों की बस हँसी से था.
आख़िरी सांस तक नहीं समझा,
मैं परेशान ज़िन्दगी से था.
कौन ये जानता कि मेरा सफ़र,
दोनों आलम की बेख़ुदी से था.
कौन जुड़ता मेरी फ़क़ीरी से,
मेरा मक़सद कहाँ किसी से था.
सांस लेता रहा हवाओं से,
ज़िन्दा लेकिन मैं शायरी से था.
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https://www.facebook.com/pages/Surendra-Chaturvedi/1432812456952945?ref=hl
मेरा होना मगर उसी से था.
घर था रोशन कहाँ चरागों से,
वो तो अन्दर की रौशनी से था.
ये है सच मेरी उम्र का हांसिल,
उसके होठों की बस हँसी से था.
आख़िरी सांस तक नहीं समझा,
मैं परेशान ज़िन्दगी से था.
कौन ये जानता कि मेरा सफ़र,
दोनों आलम की बेख़ुदी से था.
कौन जुड़ता मेरी फ़क़ीरी से,
मेरा मक़सद कहाँ किसी से था.
सांस लेता रहा हवाओं से,
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