Monday 23 June 2014

जब वो मेरी हर उड़ान को भूल गया,
मैं भी उसके आसमान को भूल गया

सूरज होकर भटक रहा अंधियारों में,
क्या तू अपने ख़ानदान को भूल गया.

ख़ुदा को हाज़िर नाज़िर कर के आख़िर दम,
चश्मदीद अपने बयान को भूल गया.

जिसके नीचे रह कर सारी उम्र कटी,
साया उस ही सायबान को भूल गया.     (सायबान = छाया देने वाला)

डूब गया उसका ज़मीर सैलाबों में,
पानी ख़तरे के निशान को भूल गया.

उसके रिश्ते बिकते रहे बज़ारों में,
गिरवी रख कर जो ज़ुबान को भूल गया.

ऐन वक़्त पर जिसने खुलकर साथ दिया,
वही सफ़ीना बादबान को भूल गया.   (सफ़ीना = जहाज) (बादबान = मस्तूल)

तुमको थका हुआ जब देखा रस्ते में,
मैं अपनी लम्बी थकान को भूल गया.

मुद्दत पहले घर से निकल गया था मैं,
लौटा तो अपने मकान को भूल गया.

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