हौंसलों की उड़ान मांगे है,
वक़्त अब इम्तिहान मांगे है.
याद आई है मुझमें रहने को,
इक पुराना मकान मांगे है.
उसने अपनी ज़ुबान कटवा ली,
अब वो मेरी ज़ुबान मांगे है.
उसने ख़ामोशियाँ तो सुन लीं हैं,
आँसुओं के बयान मांगे है.
ये ज़मीं हिल रही है अन्दर से,
ये ज़मीं आसमान मांगे है.
अब तो देकर दुहाई इज़्ज़त की,
सर मेरा ख़ानदान मांगे है.
दर्द मैं भूलना भी चाहूँ तो,
ज़ख्म अपने निशान मांगे है.
मेरे लाइक पेज को देखने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें,
https://www.facebook.com/pages/Surendra-Chaturvedi/1432812456952945?ref=hl
वक़्त अब इम्तिहान मांगे है.
याद आई है मुझमें रहने को,
इक पुराना मकान मांगे है.
उसने अपनी ज़ुबान कटवा ली,
अब वो मेरी ज़ुबान मांगे है.
उसने ख़ामोशियाँ तो सुन लीं हैं,
आँसुओं के बयान मांगे है.
ये ज़मीं हिल रही है अन्दर से,
ये ज़मीं आसमान मांगे है.
अब तो देकर दुहाई इज़्ज़त की,
सर मेरा ख़ानदान मांगे है.
दर्द मैं भूलना भी चाहूँ तो,
ज़ख्म अपने निशान मांगे है.
मेरे लाइक पेज को देखने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें,
https://www.facebook.com/pages/Surendra-Chaturvedi/1432812456952945?ref=hl
No comments:
Post a Comment