Saturday 10 May 2014

मुद्दत बाद हुआ कल ये भी, मुझमें कोई नज़र आया,
मुद्दत बाद लौट के जैसे वापस कोई घर आया.

मुद्दत बाद बदन को जैसे रूहानी अहसास हुआ,
मुद्दत बाद कोई पलकों में बन कर ख़्वाब उतर आया.

मुद्दत बाद मेरी तन्हाई उठ कर जैसे खड़ी हुई,
मुद्दत बाद मैं साथ किसी के अन्दर से बाहर आया,

मुद्दत बाद खुशबुएँ लौटीं, उम्मीदों के पंख लगा,
मुद्दत बाद हवा का झौंका खिड़की से अन्दर आया.

मुद्दत बाद किनारे आकर, लहरों ने इक नाम लिखा,
मुद्दत बाद रेत का चेहरा, अपने आप उभर आया.

मुद्दत बाद किसी मस्ज़िद में, जैसे नमाज़ें अदा हुईं,
मुद्दत बाद किसी मंदिर में, पूजा का पत्थर आया.

मुद्दत बाद पुकारा तुमने और महसूस हुआ मुझको,
मुद्दत बाद जिधर जाना था, मुद्दत बाद उधर आया.

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