Friday 2 May 2014

तेरे अहसास का गर रूह से रिश्ता नहीं होता,
किसी का हो भी जाता तू मगर मेरा नहीं होता.

नहीं मेरे बदन से कोई उगता पेड़ नूरानी,              (नूरानी = रोशनी वाला)
ज़मीं के गर अंधेरों में मुझे गाड़ा नहीं होता.

तुम्हारे नाम से इज़्ज़त मुझे देती है ये दुनिया,
जुड़े होते ना तुम मुझसे तो ये रूतबा नहीं होता.

यक़ीनन कुछ कमी तो रह गई है इश्क़ में मेरे,
नहीं तो बीच में अपने कोई पर्दा नहीं होता.

तेरे ही आईने का अक्श है अच्छाइयां मेरी,
बुरा होता अगरचे तू तो मैं अच्छा नहीं होता.

लड़ाई मौत से लड़ते हैं अपने हौंसले वरना,
जिगर की बात करने से जिगर पैदा नहीं होता.

सज़ाएं काट आया हूँ मैं अपनी बेगुनाही की,
हर इक इंसान में इतना बड़ा गुर्दा नहीं होता.

मेरे लाइक पेज को देखने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें,
https://www.facebook.com/pages/Surendra-Chaturvedi/1432812456952945?ref=hl




No comments:

Post a Comment