अब कोई इम्तिहान है ही नहीं,
दूर तक आसमान है ही नहीं.
बात मैं आसुओं से करता हूँ,
मेरे मुहँ में ज़ुबान है ही नहीं.
मैं शहर को बुझाने क्या जाऊं,
मेरा अपना मकान है ही नहीं.
तुम हो पत्थर, तुम्हें लुढ़कना है,
और आगे ढलान है ही नहीं.
एक सूरज हूँ ऐसा मैं जिसको,
रौशनी का गुमान है ही नहीं.
उसके तलवे भी चाट लो चाहे,
वक़्त अब मेहरबान है ही नहीं.
मेरी ग़ज़लों के साथ चलते रहो,
इस सफ़र में थकान है ही नहीं.
मेरे लाइक पेज को देखने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें,
https://www.facebook.com/pages/Surendra-Chaturvedi/1432812456952945?ref=hl
दूर तक आसमान है ही नहीं.
बात मैं आसुओं से करता हूँ,
मेरे मुहँ में ज़ुबान है ही नहीं.
मैं शहर को बुझाने क्या जाऊं,
मेरा अपना मकान है ही नहीं.
तुम हो पत्थर, तुम्हें लुढ़कना है,
और आगे ढलान है ही नहीं.
एक सूरज हूँ ऐसा मैं जिसको,
रौशनी का गुमान है ही नहीं.
उसके तलवे भी चाट लो चाहे,
वक़्त अब मेहरबान है ही नहीं.
मेरी ग़ज़लों के साथ चलते रहो,
इस सफ़र में थकान है ही नहीं.
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