जितना उसने दर्द सहा है,
उतना ही ख़ामोश लगा है.
अब यह रात कटेगी कैसे,
याद का बच्चा जाग उठा है.
मन जाने किस चौराहे पर,
घर का रस्ता भूल गया है.
बेहतर है कुंदी मत खोलो,
दरवाज़े पर दर्द खड़ा है.
आते जाते रहे परिंदे,
पेड़ तो तन्हा का तन्हा है.
ग़म रहता उतने का उतना.
रो लेने से क्या होता है.
चढ़ा रहा हूँ पूजा का जल,
पीपल कब का सूख गया है.
मेरे लाइक पेज को देखने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें,
https://www.facebook.com/pages/Surendra-Chaturvedi/1432812456952945?ref=hl
उतना ही ख़ामोश लगा है.
अब यह रात कटेगी कैसे,
याद का बच्चा जाग उठा है.
मन जाने किस चौराहे पर,
घर का रस्ता भूल गया है.
बेहतर है कुंदी मत खोलो,
दरवाज़े पर दर्द खड़ा है.
आते जाते रहे परिंदे,
पेड़ तो तन्हा का तन्हा है.
ग़म रहता उतने का उतना.
रो लेने से क्या होता है.
चढ़ा रहा हूँ पूजा का जल,
पीपल कब का सूख गया है.
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