आते तो हैं लोग यहाँ पर आने को,
लेकिन अपना खाली वक़्त बिताने को.
किसने साथ रखे हैं काँच के पैमाने,
नशा हुआ कि भूल गए मयखाने को.
अजब शख्स है अब भी सम्भाले बैठा है,
ख़ानदान के गिरवी रखे ख़ज़ाने को.
तू सबसे तो वफ़ा की बातें करता है,
कौन सुनेगा अब तेरे अफ़साने को.
उस पंछी के अब भी कई घौंसले हैं,
चाहे वो मोहताज़ है दाने-दाने को.
उसे हादसे छोड़ गए हैं अब घर में,
दीवारों से सर अपना टकराने को.
अगर वक़्त से इतना ही नाराज़ है तू,
ढूंढ के ले आ गुज़रे हुए ज़माने को.
मेरे लाइक पेज को देखने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें,
https://www.facebook.com/pages/Surendra-Chaturvedi/1432812456952945?ref=hl
लेकिन अपना खाली वक़्त बिताने को.
किसने साथ रखे हैं काँच के पैमाने,
नशा हुआ कि भूल गए मयखाने को.
अजब शख्स है अब भी सम्भाले बैठा है,
ख़ानदान के गिरवी रखे ख़ज़ाने को.
तू सबसे तो वफ़ा की बातें करता है,
कौन सुनेगा अब तेरे अफ़साने को.
उस पंछी के अब भी कई घौंसले हैं,
चाहे वो मोहताज़ है दाने-दाने को.
उसे हादसे छोड़ गए हैं अब घर में,
दीवारों से सर अपना टकराने को.
अगर वक़्त से इतना ही नाराज़ है तू,
ढूंढ के ले आ गुज़रे हुए ज़माने को.
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